सन २०१९ में रक्षा बंधन का पर्व १५ अगस्त को है
रक्षाबंधन का त्यौहार वैसे तो भाई बहिन का पर्व है, इस दिन भाई की कलाई पर बहिन राखी बांधती है और भाई को अपनी बहिन की रक्षा का वचन देना होता है, ये भारत भूमि पर आज से करोडो वर्ष पहले की परम्परा है और आज भी उतनी ही पवित्र और प्रासंगिक है, आज भी बहने पाने भाई के लिए आपको रक्षा बंधन के पहले भांति भाती की रखिये खरीदती दिखेगी और दूसरी तरफ भाई भी पूरी साल रूपये इकठ्ठा करता है अपनी बहिन को उसकी पसंद का उपहार देने के लिए।
वास्तव में यह त्यौहार ब्राह्मणो और क्षत्रिय राजाओ के मध्य होता था, ब्राह्मण शुरू से शास्त्रों का ज्ञान देता आया है, लेकिन उसको भी अपनी रक्षा के लिए कुछ सहायता चाहिए होती थी, ब्राह्मण शास्त्रों का संरक्षण करता था और क्षत्रिय ब्राह्मणो का संरक्षण करता है, जिसका स्मरण कराने लिए एक विशेष तिथि को समस्त राज्य के ब्राह्मण राजा को रक्षा सूत्र बांधते थे और राजा से अपनी एवं अपने परिवार की रक्षा करने का वचन लेते थे।
रक्षा बंधन का पारिवारिक महत्त्व
अब हम इसके पारिवारिक महत्त्व को समझते है, जैसा की हम सब जानते है की परिवार का मूल आधार होता है भावनाये, और भावनाओ का आधार होता है आपसी समझ, अगर भावनाये भी समझने पड़े तो फिर उसमे परिवार जैसी बात नहीं होती है।
वर्तमान समय में मूल रूप से यह त्यौहार एक ऐसे प्रेम का परिचायक है जिसमे बिना शब्दों का प्रयोग किये बहिन और भाई एक दूसरे की भावनाये समझे और ये सिर्फ शादी के पहले तक ही नहीं वल्कि उसके बाद भी ऐसे ही चलता रहता है।
रक्षा बंधन का त्यौहार कब से शुरू हुआ
रक्षा बंधन का त्यौहार कब से शुरू हुआ, इसका कोई पता नहीं है, बस यह आदिकाल से चल रहा है, और इसका वर्णन श्री मद भगवद पुराण में है, जब भगवान विष्णु जी महाराजा बलि को वरदान देकर उनका द्वारपाल बन जाना स्वीकार किया तो माता लक्ष्मी जी ने स्वयं बलि को रक्षा सूत्र बांध दिया और नियानुसार बलि को कुछ देना भी था, तो जब देने का पूछा तो लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को मांग लिया।
क्या कलावा भी राखी है?
वर्तमान समय में आपने भी देखा होगा की यज्ञ, हवन, सत्य नारायण भगवान की कथा, अखंड रामायण पाठ अथवा भगवत महापुराण के संपन्न होने पर पंडित जी सभी जनो को तिलक लगा कर कलावा बांध देते है और इस मंत्र का उच्चारण “येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:।” करते है, यह मंत्र स्वयं सिद्द है, क्युकी यह स्मरण कराता है की जिस वचन कारण महाबली और दान वीर बलि ने रक्षा का भार लिया वही वचन आपको भी लेकर मेरी रक्षा करनी है।
यह कलावा ही रक्षा सूत्र कहलाता है जो की कालांतर में राखी के नाम से भी जाना जाने लगा।
उसी समय से यह पर्व बहिन और भाईओ का भी पर्व बन गया, उसके पहले सिर्फ ब्राह्मणो और क्षत्रिओं के मध्य ही था।