उत्तराखंड

उत्तराखण्ड इसका पूर्व नाम उत्तरांचल था जो की इसके १ नवंबर २००० को २७वे राज्य बनने से २००६ तक रहा, इसके बाद जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए भारत के संविधान के अनुच्छेद ३ के अनुसार संसंद ने राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया।

उत्तराखंड के पडोसी राज्य

उत्तराखंड भारत के राज्यों में उत्तरी तरफ है इसलिए इसकी सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश हैं। सन २००० से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था।

राज्य उत्तराखंड
राज्यपाल गुरमीत सिंह ( सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल )
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (बीजेपी – ४ जुलाई २०२१ )
आधिकारिक वेबसाइट http://www.uk.gov.in
स्थापना का दिन 9 नवम्बर 2000
क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किमी
घनत्व 189 प्रति वर्ग किमी
जनसंख्या (2011) 10,086,292
पुरुषों की जनसंख्या (2011) 5,137,773
महिलाओं की जनसंख्या (2011) 4,948,519
जिले 13
राजधानी देहरादून
उच्च न्यायलय उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय
जनसँख्या में स्थान [भारत में ] 20 वॉं स्थान
क्षेत्रफल में स्थान [भारत में ]
धर्म हिन्दू धर्म , तिब्बती बौद्ध धर्म
नदियाँ गंगा, सरयू, अलकनंदा, भागीरथी, धौलीगंगा, रामगंगा, आसन बैराज आदि
वन एवं राष्ट्रीय उद्यान राजाजी राष्ट्रीय पार्क, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान
भाषाएँ गढ़वाली, कुमाऊंनी, हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी
पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश
राजकीय पशु कस्तूरी मृग
राजकीय पक्षी हिमालयी मोनल
राजकीय वृक्ष बुरांस
राजकीय फूल ब्रह्म कमल
राजकीय नृत्य पाँडव नृत्य
राजकीय खेल खो-खो
नेट राज्य घरेलू उत्पाद (2011) 36368
साक्षरता दर (2011) 86.27%
1000 पुरुषों पर महिलायें 963
सदन व्यवस्था एकसदनीय
विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र 70
विधान परिषद् सीटे
संसदीय निर्वाचन क्षेत्र 5
राज्य सभा सीटे 3

उत्तराखंड का नक्शा

उत्तराखंड का गूगल द्वारा बनाया गया नक्शा

उत्तराखण्ड का इतिहास

उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल), उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात  भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तराञ्चल के नाम से जाना जाता था।
जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया।उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है।जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अन्ततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है।हिमालय क्षेत्र में नेपाल, कुर्मांचल (कुमाऊँ), केदारखण्ड (गढ़वाल), जालन्धर (हिमाचल प्रदेश) और सुरम्य कश्मीर पाँच खण्ड है पौराणिक ग्रन्थों में कुर्मांचल क्षेत्र मानसखण्ड के नाम से प्रसिद्व था। पौराणिक ग्रन्थों में उत्तरी हिमालय में सिद्ध गन्धर्व, यक्ष, किन्नर जातियों की सृष्टि और इस सृष्टि का राजा कुबेर बताया गया हैं। कुबेर की राजधानी अलकापुरी (बद्रीनाथ से ऊपर) बताई जाती है। पुराणों के अनुसार राजा कुबेर के राज्य में आश्रम में ऋषि-मुनि तप व साधना करते थे। अंग्रेज़ इतिहासकारों के अनुसार हुण, सकास, नाग, खश आदि जातियाँ भी हिमालय क्षेत्र में निवास करती थी। पौराणिक ग्रन्थों में केदार खण्ड व मानस खण्ड के नाम से इस क्षेत्र का व्यापक उल्लेख है। इस क्षेत्र को देव-भूमि व तपोभूमि माना गया है।

नदियाँ-भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उत्तराखण्ड अनेक नदियों का उद्गम स्थल है। यहाँ की नदियाँ सिंचाई व जल विद्युत उत्पादन का प्रमुख संसाधन है। इन नदियों के किनारे अनेक धार्मिक व सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित हैं। हिन्दुओं की पवित्र नदी गंगा का उद्गम स्थल मुख्य हिमालय की दक्षिणी श्रेणियाँ हैं। गंगा का प्रारम्भ अलकनन्दा व भागीरथी नदियों से होता है। अलकनन्दा की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। गंगा नदी, भागीरथी के रुप में गौमुख स्थान से २५ कि॰मी॰ लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है।

हिमशिखर-गङ्गोत्री (६६१४ मी.), दूनगिरि , बन्दरपूँछ, केदारनाथ , चौखम्बा , कामेट , सतोपन्थ , नीलकण्ठ , नन्दा देवी , गोरी पर्वत , हाथी पर्वत , नंदा धुंटी , नन्दा कोट  देव वन , माना , मृगथनी , पंचाचूली , गुनी , यूंगटागट  हैं।

झीलें-प्रमुख तालों व झीलों में गौरीकुण्ड, रूपकुण्ड, नन्दीकुण्ड, डूयोढ़ी ताल, जराल ताल, शहस्त्रा ताल, मासर ताल, नैनीताल, भीमताल, सात ताल, नौकुचिया ताल, सूखा ताल, श्यामला ताल, सुरपा ताल, गरूड़ी ताल, हरीश ताल, लोखम ताल, पार्वती ताल, तड़ाग ताल इत्यादि आते हैं

शिक्षा-उत्तराखण्ड के शैक्षणिक संस्थान भारत और विश्वभर में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये एशिया के सबसे कुछ सबसे पुराने अभियान्त्रिकी संस्थानों का गृहस्थान रहा है, जैसे रुड़की का भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (पूर्व रुड़की विश्वविद्यालय) और पन्तनगर का गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवँ प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय। इनके अलावा विशेष महत्व के अन्य संस्थानों में, देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी, इक्फ़ाई विश्वविद्यालय, भारतीय वानिकी संस्थान; पौड़ी स्थित गोविन्द बल्लभ पन्त अभियान्त्रिकी महाविद्यालय और द्वाराहाट स्थित कुमाऊँ अभियान्त्रिकी महाविद्यालय भी हैं।

रहन-सहन-उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है। यहाँ ठण्ड बहुत होती है इसलिए यहाँ लोगों के मकान पक्के होते हैं। दीवारें पत्थरों की होती है। पुराने घरों के ऊपर से पत्थर बिछाए जाते हैं। वर्तमान में लोग सीमेण्ट का उपयोग करने लग गए है। अधिकतर घरों में रात को रोटी तथा दिन में भात (चावल) खाने का प्रचलन है। लगभग हर महीने कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है। त्योहार के बहाने अधिकतर घरों में समय-समय पर पकवान बनते हैं।

त्योहार-उत्तराखण्ड में पूरे वर्षभर उत्सव मनाए जाते हैं। भारत के प्रमुख उत्सवों जैसे दीपावली, होली, दशहरा इत्यादि के अतिरिक्त यहाँ के कुछ स्थानीय त्योहार हैं

 

देवीधुरा मेला (चम्पावत)

पूर्णागिरि मेला (चम्पावत)

नन्दा देवी मेला (अलमोड़ा)

गौचर मेला (चमोली)

वैशाखी (उत्तरकाशी)

माघ मेला (उत्तरकाशी)

उत्तरायणी मेला (बागेश्वर)

विशु मेला (जौनसार बावर)

हरेला (कुमाऊँ)

गंगा दशहरा

नन्दा देवी राजजात यात्रा जो हर बारहवें वर्ष होती है

धार्मिक तथ्य- मन्सार नामक स्थान पर सीता माता धरती में धरती में समाई थी। यह स्थान उत्तराखण्ड के पौडी जिले में है और यहाँ प्रतिवर्ष एक मेला भी लगता है।

कमलेश्वर/सिद्धेश्वर मन्दिर श्रीनगर का सर्वाधिक पूजित मन्दिर है। कहा जाता है कि जब देवता असुरों से युद्ध में परास्त होने लगे तो भगवान विष्णु को भगवान शंकर से इसी स्थान पर सुदर्शन चक्र मिला था।

सती अनसूइया ने उत्तराखण्ड में ही ब्रह्म, विष्णु, एवँ महेश को बालक बनाया था।

डोईवाला भगवान दत्तात्रेय के २ शिष्यों की निवास भूमि है। यही नहीं, भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने भी यहीं प्रायश्चित किया था।

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