झूठ एक ऐसा सच है जिसे कोई नहीं झुठला सकता है, हम सभी अपनी सहूलियत के हिसाब का अपने जीवन में झूठ का सहारा लेते है और सच पूछिए तो बिना झूठ के सहारे के जिंदगी बहुत बदतर हो जाएगी और हम हर बात में इतने उलझते चले जायेगे की निकलना मुश्किल हो जायेगा, झूठ का अगर सहारा न हो तो सच पर ठीके रहना मुश्किल है।
आम तौर पर हम लोग झूठ बोलने में नहीं डरते। छोटे-मोटे झूठ तो बोलने ही पडते है। लेकिन जिस झूठ से किसी के जीवन या प्रतिष्ठा पर असर पड़ने वाला हो वो झूठ सिर्फ झूठ नहीं वल्कि एक अपराध बन जाता है, यानि की अगर अदालत में झूठ बोल दिया जाए तो इसकी सजा हो सकती है क्युकी ये झूठ किसी का जीवन या प्रतिष्ठा को नुकशान पंहुचा सकता है।
कोर्ट में झूठ कब और कैसे बोला जा सकता है ?
जब भी कोइ व्यक्ति कोर्ट या न्यायालय में कोई मौखिक या लिखित स्टेटमेंट देता है तो उसे बयान कहते हैं और देने वाला याची या गवाह होता है । क़ानूनी भाषा में इस लिखित पत्र को एफिडेविट कह दिया जाता है। एफिडेविट देने के लिए नोटरी या फिर ओथ कमिश्नर के सामने शपथ ली जाती है। शपथ में कहा जाता है कि उसका स्टेटमेंट यानी बयान सत्य है इसको हलफनामा या फिर शपथपत्र भी कहते है ।
इसके बाद उस स्टेटमेंट या हलफनामे को नोटरी कमिश्नर अटेस्ट करता है यानी की इस बात की पुष्टि की जाती है की शपथपत्र झूठा नहीं है और किसी मानसिक विकृति या दवाव की दशा में नहीं बनवाया गया है । इसके बाद ही इस ऐफिडेविट या शपथ पत्र को प्रयोग किया जाता है।
इसलिए सावधानी के तौर पर जब भी कहीं स्टेटमेंट या हलफनामा दें तो जांच लें कि जो कुछ भी लिखा है वो सब सही है या नहीं। दी गयी जानकारीयों में कुछ भी गलत नहीं होना चाहिए इसके बाद ही उसे कमिश्नर के पास भेजे जाँच के लिए।
कोर्ट में झूठ बोलने की सजा
अगर आपसे शपथ पत्र में गलती से कोई झूठी जानकारी चली जाती है या आप जानबूझ कर गलत जानकारी देते हैं तो ये ओथ एक्ट का उल्लंघन होता है और ओथ एक्ट 1969 के अनुसार यह माना जाता है कि बयान देने वाले ने जो कुछ भी कहा है वो सच है। इसलिए इसका जिम्मेदार भी वो खुद है और दंड का भागीदार भी स्वयं है ।
झूठ बोलने की सजा क्या होती है
अब अगर कोई जानकारी गलती से या फिर टाइपिंग मिस्टेक के कारण गलत गयी है तो दूसरा शपथपत्र देकर आप माफ़ी मांग सकते है लेकिन अगर कोई जानबूझकर झूठा एफिडेविट यानी शपथपत्र देता है तो उसके खिलाफ लीगल एक्शन लिया जाता है।
एक और जरूरी बात जो यहाँ जान लेना बहुत जरुरी है की अगर कोई व्यक्ति A दूसरे किसी व्यक्ति B के दिए गए एफिडेविट पर साइन करता है (क्युकी इस पर हस्ताक्षर तो B होने चाहिए थे ) तो इसे धोखाधड़ी माना जाता है। इसके लिए झूठे साइन करने वाले व्यक्ति A के ऊपर आईपीसी की धारा-419 के तहत पहचान बदलकर धोखा देने का मुकदमा चलता है।
झूठा शपथ पत्र देने पर सजा
इसलिए याद रखिये की अगर कोई व्यक्ति कोर्ट यानि अदालत में झूठा एफिडेविट जमा करता है तो उसके खिलाफ सीआरपीसी की धारा 340 के तहत मुकदमा होता है और झूठा शपथपत्र देने के मामले में यदि दोष सिद्ध होता है तो 7 साल की सजा होती है।
कोर्ट में झूठ बोलने की सजा
तो इससे हमे याद रखना है की झूठ नहीं बोलना है और कोर्ट तो बिलकुल नहीं बोलना है क्युकी झूठ बोलने की सजा 7 की जेल होती है, लेकिन ये सजा कोर्ट में झूठ बोलने की सजा है दैनिक जीवन में नहीं क्युकी दैनिक जीवन में हमारे झूठ से हम सिर्फ अपना बचाव करते है न किसी की प्राण या प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाते है.
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