History of Etawah in Hindi
महाभारत काल मेँ इटावा पाँचाल प्रदेश का अंग था। वर्तमान एटा, मैनपुरी, कानपुर, शाहजहाँपुर, बरेली, बदायूँ, पीलीभीत व नैनीताल इसका हिस्सा थे। इस प्रदेश की राजधानी कम्पिल नगरी मेँ थी जो अब फर्रुखाबाद मेँ है।
राजा द्रुपद इस प्रदेश के सम्राट थे, पाण्डवोँ ने 14वर्ष का वनवास इसी जिले के द्वैत वन मेँ किया था। यह वन यमुना और चम्बल नदियोँ के मध्य स्थित था, पाण्डवोँ ने 1वर्ष का गुप्तवास राजा विराट की राजधानी चक्रनगर(चकरनगर) मेँ किया।
भीम द्वारा यहीँ पर बकेवर के शक्तिशाली सामँत बक्रासुर(बकासुर) का वधकिया। इटावा जनपद की अनेक रियासतेँ बहुत ताकतवरथीं। मूँज और आसई जनपद के सुद्रढ़ स्थान थे। 11वीँ शताब्दी का एक संस्क्रत का शिलालेख कुदरकोट के खेरे मेँ 1875ई. मेँ मिला, जो अब कलकत्ता के अजायबघर मेँ है, इसमेँ हरिवर्मा के पुत्र तक्षदत्त के भूमिदान का उल्लेख है।
इटावा का मुगलकालीन इतिहास
इटावा मुगलोँ के कब्जे मेँ रहा। 17वीँ शताब्दी मेँ यह क्षेत्र मराठोँ के आधिपत्य मेँ रहा। 1762 मेँ इस रियासत पर रोहिल्ला सरदार ब्जा करने आये और रोहिल्ला फौज का नेत्रत्व मोहसिन खाँ ने किया और राजा किशनराव व बालाराव पण्डित ने मोर्चा ले रोहिल्लोँ को खदेडकर दुर्ग इटावा की रक्षा की। तत्पश्चात रोहिल्ला सरदार हफीज खाँ अपने पुत्र इनायत खाँ और भारी लाव लश्कर व तोपखाने के साथ आया और पूरे क्षेत्र पर रोहिल्लोँ का आधिपत्य हो गया।
1766 मेँ भुल्लरराव मराठा ने फफूँद पर आक्रमण किया और रोहिल्लोँ से मोर्चा लिया। 1776 से 1801 तक इटावा औघ के कब्जे मेँ रहा। फिर अलग – अलग रियासतेँ स्थापित हो गयी।
इटावा का ब्रिटिश कालीन इतिहास
1857 की क्रान्ति मेँ इटावा के क्रान्तिवीरोँ ने अंग्रेजोँ के विरुद्ध जमकर युद्ध लडा और 1947 स्वतँत्रता प्राप्ति तक यह अलख लगातार जारी रही। ऐ ओ ह्यूम को इटावा का कलेक्टर बनाया गया। यही पर रहते हुए उनकी दिमाग में कोंग्रेस की स्थापना का विचार आया और उन्होंने युवाओं को एक पार्टी बनाने के लिए प्रेरित किया ।