चूहेदानी का सबक
रात के सन्नाटे में जब 11-12 बजे “खट” की आवाज गूंजती थी, तो हम समझ जाते थे कि चूहेदानी ने अपना काम कर दिखाया है। उस जमाने में बिजली की अनिश्चितता के कारण हम सुबह का इंतजार करते। सुबह चूहेदानी के कोने में एक चूहा दुबका मिलता। हिंदू संस्कृति में जीव हत्या से परहेज के चलते हमारे बुजुर्ग उस चूहेदानी को घर से दूर नाले के पास ले जाते और उसका गेट खोल देते, ताकि चूहा भाग जाए।
लेकिन हैरानी तब होती थी जब खुला गेट होने के बावजूद चूहा भागता नहीं था। वह कोने में सिमटा रहता। बुजुर्ग लकड़ी से उसे हल्के से मारते, शोर मचाते, फिर भी वह टस से मस न होता। बार-बार प्रहार और शोर के बाद ही वह भागता।
बचपन में यह सवाल मन में उठता था कि गेट खुला होने पर भी चूहा भागता क्यों नहीं? जवाब तब मिला जब समझ बढ़ी। रातभर चूहेदानी में कैद चूहा बाहर निकलने की हर कोशिश करता, लेकिन असफल होने पर उसने मान लिया कि यह पिंजरा ही उसका भाग्य है। सुबह गेट खुलने पर भी उसकी मानसिकता नहीं बदली। खुला रास्ता सामने था, पर वह उसे देख ही नहीं पाया।
हिंदू समाज की गुलामी की मानसिकता
हमारा हिंदू समाज भी उसी चूहे की तरह रहा। हजारों सालों की गुलामी ने हमें यह विश्वास दिला दिया कि हम गुलामी के लिए ही बने हैं। मुगलों के बाद अंग्रेज आए, और जब अंग्रेज गए, यानी गेट खुला, तब भी हम आजादी का रास्ता न देख सके। हम एक वंश की गुलामी में जकड़ गए।
यह गुलामी इतनी गहरी थी कि हममें गुलामी करने की होड़ लगने लगी। हम इतने गिर गए कि हमारे ही नेताओं ने हिंदू समाज को आतंकवाद से जोड़ दिया। जिस बात को कहने की हिम्मत पाकिस्तान में भी नहीं थी, उसे हमारी गुलाम मानसिकता ने कह डाला।
हमारी चुप्पी ने उनके हौसले बढ़ाए। श्रीराम और श्रीकृष्ण को “मिथक” घोषित किया गया। राम सेतु जैसे आस्था के केंद्रों को तोड़ने की कोशिश हुई। मजहबी आधार पर आरक्षण देकर हमारे हक छीने गए। फिर यह घोषणा की गई कि इस देश के संसाधनों पर हमारा पहला हक नहीं है।
हम चूहे वाली मानसिकता में डूबे थे। फिर “लक्षित हिंसा बिल” की बात आई, जिसमें बहुसंख्यक हिंदुओं को जुल्मी और दंगाई बताने की साजिश रची गई।
एक नया सवेरा
लेकिन इस काली रात के बाद सुबह आई। एक व्यक्ति आया, जो लकड़ी लेकर हमें जगाने और खुला दरवाजा दिखाने का साहस रखता था। उसने पूरे देश में घूमकर हमें गुलामी की नींद से जगाया। 16 मई, 2014 को हम उस मानसिक कैद से बाहर निकले।
कुछ लोग आज भी गुलामी की मानसिकता में जकड़े हैं। वे कहते हैं:
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मंदिर बन ही नहीं सकता।
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धारा 370 हट ही नहीं सकती।
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हिंदू मंदिर मुक्त हो ही नहीं सकते।
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समान नागरिक संहिता या CAA लागू हो ही नहीं सकता।
यहां तक कि मंदिर बनने और 370 हटने के बाद भी उन्हें विश्वास नहीं कि यह हो चुका है। वे अंधेरे की रट लगाए बैठे हैं।
आह्वान
उन लोगों से निवेदन है जो अभी भी पिंजड़े में हैं—अब निकल आइए। हमने उस दरवाजे को हमेशा के लिए तोड़ दिया है। अब समय है अपनी मानसिकता बदलने का, आजादी को गले लगाने का। यह नया सवेरा हमारा है।