भारत देश के जनसँख्या १ अरब से ज्यादा है, यह देश विभिन्न मतों, जातियो और सम्प्रदाय के लोगो को अपने में समेटे हुए है, भारत में हर जाती के व्यक्ति की बेटियो के लिए अलग मानसिकता है, हर धर्म के लोगो के लिए बेटियो के अलग मानसिकता है, राज्य के अनुसार और फिर जिले, तालुका और गांव के अनुसार लोगो की बेटियो के लिए अलग मानसिकता है।
भारत में एक वर्ग ऐसा भी है जो बेटियो को बहुत ही पवित्र, पूज्य और उसके दैवीय रूप का दर्शन करता है, उनसे पैर नहीं छुलवाता है, नव दुर्गा जैसे त्योहारो में उनके पैर पूजता है, उनका पूजन करता है उनको भोजन खिलाकर ऐसा सोचता है की उसने माँ दुर्गा को भोजन करा दिया हो, पर इस मानसिकता के लोग पुरे भारत देश में १०% से भी कम ही होंगे।
अब हम बात करते है उनलोगों की जो बेटियो को मारने की सोचते है, इस देश में कुछ ऐसे वर्ग है जो शिक्षा और जागरूकता से वंचित है उनको बेटिया कुछ हद तक बोझ लगती है, क्योंकि उनकी मान्यता है की बेटी का रिश्ता होने के बाद पुरे जीवन उनको लड़के बालो के सामने सर झुकाकर रहना पड़ेगा, और दूसरी बात बेटी के रहने से घर अच्छा लगता है पर एक दिन वो चली जाएगी, ऐसी मानसिकता के लिए सब लोग जिम्मेदार नहीं है, इसके लिए सिर्फ वही लोग जिम्मेदार है जो शादी के समय लड़की बालो को ज्यादा निचा दिखा देते है अपने रुतवे को दिखाने के लिए।
पुरे देश का महिला और पुरुष अनुपात ९४० महिलाये प्रति १००० पुरुषो पर है और देश की साक्षरता दर ७४% है, और राज्यो में सबसे कम महिला पुरुष अनुपात हरियाणा में है ये है ८७९ महिलाये प्रति १००० पुरुष और केंद्र शासित प्रदेशो में सबसे कम दमन और दीव का है ये है ६१८ महिलाये प्रति १००० पुरुषो पर।
बेटियो का जन्म न लेना कोई समस्या नही है, समस्या है उनको पैदा होते ही मार देना, पैदा होए के बाद कम भोजन देना, उनको शिक्षा न देना, उनके स्वस्थ या अस्वस्थ होने पर समुचित इलाज न करबाना, अब आप किसी भी राज्य को लेकर चलो, हरियाणा को ही लेलो, यहाँ पर ८८० महिलाये प्रति १००० पुरुषो पर है, इसके लिए पूरा हरियाणा दोषी नहीं है।
अगर जाती और धर्म के आधार पर जनगणना की जाये और उनके अनुसार स्त्री पुरुष अनुपात निकाला जाये तो आप पाएंगे की ये अनुपात सबसे कम आपको दलितों, पिछडो, मुस्लिमो में मिलेगा, क्योंकि ये लोग कम पढ़े लिखे और कम जागरूक वर्ग में आते है, वास्तव में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे संकल्पो की जरूरत इन लोगो को ही है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की जरुरत क्यों पड़ी, इस बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के सामाजिक और राजनेतिक दोनों ही फायदे है, पहले हम लोग सामाजिक फायदे की तरफ ध्यान देते है, समाज में महिलाओ और पुरुषो दोनों का ही योगदान बराबर का है, एक के ऊपर समाज की जिम्मेदारी है तो दूसरे पर घर की, अब सोचिये देश के किसी राज्य के किसी जिले के किसी गांव में कुँवारी लड़कियों की संख्या कुंवारे लड़को से कम है, और मान लो उस गांव में शादिया पड़ोस के गांव या जिले से होती रहे, यहाँ की बेटी वहां और वहां की बेटी यहाँ, पर एक स्तिथि ऐसी आये की ४० लड़के इस गांव के और ४० लड़के उस गांव के कुँवारे रह गए, अब उनकी शादी कैसे होगी।
इस भयानक स्तिथि में उनको शादिया या तो दूर करनी पड़ेगी या फिर होगी ही नहीं, दूर शादी होने के २ नुकशान होते है, भारत देश में व्रत, त्यौहार और परम्पराये प्रति १० किलोमीटर पर बदल जाती है, किसी के यह कुछ के यहाँ कुछ, इसमें पारिवारिक सामंजस्य बिठाने में दिक्कत आती है, ये तो है बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की सामाजिक जरूरत।
अब थोड़ा ध्यान देते है बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की राजनेतिक जरूरतों की, स्वाभाव से हर व्यक्ति स्वार्थी है, फिर चाहे पुरुष हो या महिला, और हर कोई अपना वर्चस्व चाहता है, महिलाओ का पुरे देश में वोट बैंक लगभग ४० करोड़ का है और इस वोट का ध्रुवीकरण करने के लिए कुछ योजनाए ऐसी बनायीं जाती है जो एक बड़े वोटबैंक को आकर्षित कर सके, महिलाओ का वोट मुस्लिम वोट के बाद सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।
Beti Bachao Beti Padhao Yojana Scheme Benefits in Hindi
भारत के प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत तौर पर भारत के कुछ राज्यो और जिलो में घटती हुयी लड़कियों की संख्या पर संज्ञान लिया, और उन्होंने पाया की इस समस्या में हरियाणा सबसे आगे है, उन्होंने २२ जनवरी २०१५ को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना को हरियाणा के पानीपत जिले में शुरू किया, यह योजना १०० करोड़ रूपये की है और इसके लिए देशभर के १०० जिले चुने गया है जिनमे हरियाणा के १२ जिले है।
२००१ में सरकारी आंकड़ो के अनुसार ० से ६ वर्ष आयु के बच्चो की सख्या में लड़कियों की संख्या ९२७ प्रति १००० लड़को पर थी, वही २०११ में यह संख्या घट कर ९१९ रह गयी है तो स्वाभाविक रूप से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा आना ही था।
बेटी बचाओ के साथ बेटी पढ़ाओ को इसलिए जोड़ा गया क्योंकि आजतक परिवार की सभी जिम्मेदारी सिर्फ बेटे ही उठाते आये है, वो चाहे कुछ भी करे पर २२ साल के बाद पूरा परिवार ये चाहता है की लड़का कुछ कमा कर लाये उसके लिए कुछ भी करे कैसे भी हालात हो उसे बिना शिकायत किये काम करना ही पढता था, और तभी उसकी शादी हो सकती थी, अब तक लड़के पढ़ीलिखी अनपढ़ लड़कियों से शादी कर के अपना जीवन गुजारते थे, पर आने वाले समय में लडकिया भी बेरोजगार लड़को के जीवन में खुशिया ला सकेगी उनसे शादी करके, क्योंकि जीवन नैया पर करने के लिए किसी एक का नौकरी करना जरुरी है, अब लड़कियों को जल्दी मिलजायेगी तो लड़को पर भी जिमेदारी का बोझ कुछ कम होगा।