कश्मीरी पंडितों का दर्द
महर्षि कश्यप के नाम से अलंकारित कश्मीर भूमि इन्साफ के लिए चिल्ला-चिल्लाकर विगत 25 सालों से सत्ता की बेरुखी से बेदम और बेजान हो गयी है.अलगावादियों के प्रमुख दल JKLF कश्मीरी पंडितों के पुनर्स्थापन के लिए कोलोनियाँ बनने के सरकारी फैसले के खिलाफ ‘पत्थरबाजी’ में उतर आये हैं.ऐसे में आपको अपने ही देश में रिफ्यूजियों की तरह जिन्दगी बिताते कश्मीरी पंडितों की यथास्थिति के कारणों का पता होना चाहिए.देसी lutyens आपको बताते हैं कि कालीदास के ‘स्वर्ग’से पंडितों के दर्दनाक पलायन की कहानी
1) कश्मीर को पूर्व के स्विट्जरलैंड के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से डोगरा वंश के अंतिम शासक महाराजा हरी सिंह ने भारत संघ में मिलने से इनकार कर दिया.इसका फायदा उठाते हुए पाकिस्तान ने कबीलायिओं की मदद से कश्मीर का पश्चिमी हिस्सा हड़प लिया.
2) भारत संघ में विलय होने के बाद कश्मीर में भारतीय फौजों की तैनाती के बाद,पकिस्तान के हौंसले पस्त होने लगे.उसके बाद लगातार 3 युद्धों में भारत द्वारा रौंदे जाने से बौखलाए पाकिस्तान ने POK(पाक अधिकृत कश्मीर) का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों यथा अलगाववादियों को संरक्षण देने और घुसपैठ में करने लगा.
3) 90 के दशक के अंतिम वर्षों में एक बार फिर पाक समर्थक अलगाववादियों ने घाटी क्षेत्र में भारत विरोधी सशस्त्र आन्दोलन की शुरुआत की.और रहवासियों से भारत के विरुद्ध होने की अपील की.इसका घाटी के हिन्दुओं(सारस्वत पंडितों) ने विरोध किया.
4) असल में पाक पिछले 40 वर्षों से कश्मीर की एकता को खंडित करने के प्रयास में जुटा हुआ था,वह इसमें सफल भी रहा परिणामतः घाटी के बहुसंख्यक मुसलमानों(सभी नहीं) ने पाक का समर्थन करते हुए,हिन्दुओं को भारत का प्रतिनिधि घोषित करते हुए,कत्लेआम करना शुरू कर दिया.
5) हिन्दू पंडितों के घरों को जला दिया गया,माँ-बहनों के साथ दुराचार किया गया.धर्मांतरण के लिए मजबूर किया गया.पंडितों के घरों में फरमान चिपकाया गया क वे “घाटी छोड़ कर चले जायें,अन्यथा उन्हें जिन्दा जला दिया जाएगा”.कश्मीरी पंडित पलायन को मजबूर हो गए.
6) सर्वानंद कौल,जस्टिस नीलकंठ गंजू और पं टीका लाल टपलू सरीखी घाटी की प्रमुख हिन्दू शख्सियतों की निर्मम हत्याएं कर दी गयी.पनुन(कश्मीरी पंडितों का संगठन)की माने तो 400 से ज्यादा पंडित 1990 में ही मौत के घाट उतार दिए गए.
7) लगभग चार से पांच लाख कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया.दुखद है कि उस वक़्त उनके हितों की रक्षा करने वाला कोई नहीं था.हिन्दुस्तान कश्मीरी पंडितों की एक पूरी पीढी की बर्बादी देखता रहा.
8) मानवाधिकारों की वकालत करने वाले यूनाइटेड नेशन जैसे संगठनों ने इसे ‘नरसंहार’ की श्रेणी में रखना भी मुनासिब नहीं समझा.सरकारें बदलती गयीं पर पंडितों की हालत जस की तस रही.उल्टा अलगाववादियों ने सरकार में भागीदारी करते हुए,कश्मीरी पंडितों का जम कर शोषण किया.
9) राज्य ही नहीं केंद्र सरकारें भी पंडितों के प्रति उदासीन ही दिखायी दी.खून बहाने वाले अलगाववादी खुले मंच से भारत को गाली देते रहे और भारत के बदले पंडितों को शिकार बनाते रहे.
10) भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास से भी ज्यादा त्राश उठाने वाले ,उनके भक्तों(कश्मीरी पंडितों) की दुर्दशा का आकलन करने के लिए,पिछले 25 सालों में एक भी न्यायिक आयोग गठित नहीं किया गया.
11) हाल ही में बनी पीडीपी और बीजेपी की संयुक्त सरकार,ने अलगाववादियों के एक प्रमुख नेता को ससम्मान रिहा कर दिया.जो की संकेत है की कश्मीरी पंडित इन्साफ की आशाएं करना छोड़ दें.और अपने घरों और जमीन को पूरी तरह अवचेतन से हटा दें.क्योंकि पंडितों से ज्यादा जरूरी,वोट बैंक की राजनीति है.परन्तु पंडितों की अलग कॉलोनी बनाकर उन्हें पुनः घाटी में बसाने की घोषणा से ही सही,पर उम्मीद की नयी किरण जरूर फूटी है.