दीपावली का उत्सव वैसे तो हिन्दुओं के आराध्य प्रभु श्री राम के अयोध्या बापस आने का उत्सव है, जिसमे समस्त नगरवासिओ ने प्रभु आगमन की प्रसन्नता में दीपोत्सव मनाया था, ये तभी से चल रहा है, जब भारत में अंग्रेज आये तो यहाँ पर किसी विशिष्ट के आगमन पर तोपों की सलामी दी जाती थी, और प्रभु श्री राम तो अतिविशिष्ट है, हिन्दू धर्म का अपना एक विस्तृत स्वाभाव है ये संकीर्णता में नहीं फंसता है, धर्म में हर नयी वस्तु, विचार, क्रिया और पद्द्ति को आत्मसात करने की अद्भुद क्षमता है, इसलिए इस दिवस पर आतिशबाजी का प्रयोग शुरू हो गया, और इसी क्रम में दशहरे में भी आतिशबाजी का प्रादुर्भाव हो गया, क्युकी रावण वध एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना है, तो उस के मरण के समय शोर होना भी सार्थक है, और हमारे इस त्यौहार में दीपक प्रज्वलन के बाद आतिशबाजी का विशेष स्थान बन गया जो की किसी प्रामाणिक धर्मग्रन्थ में न होते हुए भी हमारे इस धर्म का भाग बन गया।
आतिशबाजी का दीपावली में जुड़ने का कारण
जैसा की आपको बताया है की हिन्दू धर्म एक विशाल समुद्र के समान है जिसमे बड़ी से बड़ी उथल पुथल करने वाली बाते बड़ी ही शांति से समाहित हो जाती है और धर्म का अभिन्न अंग बन जाता है, और जैसा की हम सभी जानते है जब समाज का एक वर्ग एक पद्द्ति को शुरू कर देता है तो आने वाली पीढ़िया उसको ही एक परम्परा मान कर उसका अनुपालन करने लगती है और कालांतर में वह क्रिया उस धर्म का एक हिस्सा बन जाता है और उसके बिना उस उत्सव का मनाया जाना एक अधूरेपन की अनुभूति कराने लगता है, ऐसा ही आज दीवाली और आतिशबाजी का सम्बन्ध है, ये किसी धर्म ग्रन्थ न होते हुए भी आज अभिन्न अंग है, और जैसा की आपको पहले बताया कि भगवान राम का आगमन हर्ष का प्रतीक है, और वो सबसे विशिष्ट है इसलिए दीपावली के समय पटाके यानि की आतिशवाजी चलाने का एक विशेष महत्त्व है, हमे अंदर से उत्साह का सृजन कराती है उन पटाको की ध्वनि, इसलिए जम के पटाके फोड़ने चाहिए। ।
भांति भांति की आतिशवाजी की जरूरत क्या है
हमारे घरो में एक वर्ग ऐसा भी होता है जिसके प्रति और जिसकी सुरक्षा के प्रति हम बहुत संवेदनशील होते है, और ये होते है हमारे बच्चे, आतिशबाजी में शोर वाले पटके एकबार आवाज करके चुप हो जाते है, जबकि बच्चो को कुछ लम्बा मनोरंजन चाहिए, इसलिए हमारे कुछ करामाती लोगो ने चाकरी, फुलझरी, चम् चम्, रॉकेट, अनार इत्यादि का अविष्कार बारूद को एक संतुलित में लेकर किया, और यही चलने पर बच्चे खुश होते है।
पर्यावरण और आतिशबाजी
पर्यावरण पर खतरा तो हर उस चीज से है जो कार्बन उत्सर्जित करती है, और साल के पुरे ३६५ दिन करती है, इनके वातानुकूलन, गाड़िया और फैक्ट्रियां भी है, लेकिन तंज हमेसा दीवाली की अतिशबाजी पर ही होता है, क्युकी बाकी सब सुख के साधन है, उनको बंद नहीं कर सकते है और हिन्दुओ के त्योहारों पर ऐसे फतवे लगाकर उनका मनोबल तोड़ना बड़ा आसान है, ज्यादातर हिंदू दीवाली पर पटके चलने के पक्ष में नहीं है, और चलते भी नहीं है, लेकिन इस तरह का तुगलकी फरमान दुखी करने वाला है, आप पर्यावरण की चीन पूरी साल करियेगा, वो नहीं करेंगे, गरीबो की चीन पुरे साल नहीं करेंगे लेकिन शिवरात्रि में शिवजी दूध चढ़ाते भक्तो को देखकर जरूर करेंगे, पूरी साल पानी नहीं बचाएंगे लेकिन होली पर याद आएगी, ये सब बाते हिन्दुओ के मन में देश के प्रति अपनापन कम करने वाली स्थिति कम करती है साथ ही प्रशासन, विधायिका और न्याय पालिका से एक उपेक्षित होने का अहसास भी दिलाती है जो की वास्तव में राष्ट्र हित में नहीं है, क्युकी बकरीद, क्रिश्मस, वैलेन्टिन डे या अंग्रेजी नव-वर्ष के समय इस तरह की ज्ञान वर्धक बाते कोई नहीं करता है।