हैदराबाद दक्षिण भारत में २९वे भारतीय राज्य तेलंगाना की राजधानी है. हैदराबाद नाम का मतलब “हैदर के निवास” या “शेर शहर”, फारसी / उर्दू शब्द “हैदर” से ली गई या “हैदर” का अर्थ शेर होता है.
एक लोकप्रिय कहानी के अनुशार इस शहर का संस्थापक मुहम्मद क़ुली कुतब शाह इस शहर में एक नर्तकी भागमती के प्यार के कारन इस शहर का नाम भग्नगर रखा, पर शादी के उस लड़की ने इस्लाम स्वीकार कर लिया और फिर उसका नाम हैदर महल रखा गया और उसी के नाम पर इस शहर का नाम हैदराबाद रखा गया, एक दूसरी कहने के अनुशार मुहम्मत क्विल क़ुतुब और भागमती के बेटे का नाम हैदर था उसी के नाम पर इस शहर का नाम बाद में हैदराबाद रखा गया, अब दोनों में से कौन सी कहानी सही है ये आप लोग खुद सोच सकते है.
एक सर्वे के अनुशार पता चलता है की ये शहर ईशा के ५०० वर्ष पूर्व पाषाण काल से ही अस्तित्व में था, ये शहर चारो तरफ से गोलकुंडा के पहाफियो से घिता हुआ है, इस शहर पर चालुक्य के राजाओं ने संन ६२४ से सन्न १०७५ ने राज्य किया, ११वि शताब्दी में काकतीय राजाओं ने सन ११५८ से १३१० तक राज्य किया, काकतीय साम्राज्य को बाद में ख़िलजी शासको ने हरा कर १३१० से १३२१ तक राज्य किया.
काकतीय साम्राज्य को मालिक काफूर ने एक लड़ाई में हरा दिया, मालिक काफूर अलाउदीन ख़िलजी का सेनापति था, उस समय अल्लाउद्दीन ख़िलजी दिल्ली में शासन करता था, यहाँ की कोलार खान से निकला कहिनूर हीरा भी ख़िलजी ने ले लिया, इन जंगो का शिलशिला यु ही चलता रहा, और अंत में ये शहर औरंगजेब के हठी में आ गया.
कुछ समय बाद ये शहर दक्कन राज्य का के अधीन हो गया और सन १७१३ में फ़र्रुख़सियर ने आसिफ जहाँ को दक्कन राज्य का सूबेदार नियुक्त किया और उसे निज़ाम उल मुल्क का ख़िताब भी दिया, आसिफ जहाँ के मृत्यु सन १७४८ में हो गयी, उसके बेटे ने सन १७६२ से १८०३ तक राज्य किया, वर्ष १७६८ में उसने ईस्ट इंडिया कंपनी से एक संधि कर ली, जिसके अनुशार कम्पनी आसिफ जहां द्वितीय को एक निश्चित राशि का वार्षिक किराया देना था.
१७६९ में हैदराबाद निजाम की आधिकारिक राजधानी बन गयी पर सीके शासको को सदेव हैदरअली, मराठो और अन्य पडोसी राज्यों से खतरा बन रहा और इससे बचने के लिए दक्कन के राजा अंग्रेजो के ज्यादा नज़दीक आते गए, इसके लिए अंग्रेजो ने अपनी एक सेना वह रखना निश्चित किया इस सेना के बदले में निजाम को अंगेजो को वर्हिक किर्या देना पड़ता था साथ ही सी का पूरा खर्च भी उठाना पड़ता था, १७७८ तक इस शहर में कोई भी कारखाना नहीं था, १८८० में रेलवे के आने से इस शहर का नक्शा बदल गया, फिर हुसैन सागर झील भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया.
आज़ादी के बाद यहाँ के निज़ाम ने स्वयं को स्वतंत्र रहने की माग की, जिसे पटेल जी ने बड़ी ही समझदारी से सुलझा लिया, पर २०१४ में इस शहर के लोगो एक अलग राज्य बना ही लिया उसका नाम तेलंगाना है और ये शहर उस नए राज्य की राजधानी है