नई दिल्ली, यमुना नदी के पश्चिमी तट पर स्थित भारत की राजधानी, भारत में सबसे तेजी से बढ़ते शहरों में से एक है. यह उत्तर प्रदेश से यमुना नदी के पार, हरियाणा से और पूर्व में तीन तरफ से घिरा हुआ है. दिल्ली शहर का इतिहास पुराना है. महाकाव्य महाभारत में यह शहर इंद्रप्रस्थ के रूप में जाना जाता था इस शहर पर लगातार राजवंशों 13 वीं और 17 वीं शताब्दी के बीच राज किया,गौरवशाली अतीत के अवशेष इस शहर के विभिन्न भागों में महत्वपूर्ण स्मारकों के रूप में जीवित रहते हैं.
दिल्ली का प्राचीन इतिहास
भारतीय लोककथाओं ( भारतीय महाकाव्य महाभारत) के अनुसार, दिल्ली में 3500 ई.पू. के आसपास स्थापित शानदार और भव्य इंद्रप्रस्थ के नाम से विख्यात, पांडवों की राजधानी था. यह सोनीपत, (फरीदाबाद के पास) पानीपत, Tilpat, और बागपत शामिल जो पांच prasthas या `मैदानों ‘में से एक है. हिंदू ग्रंथों दिल्ली के शहर “हाथी शहर” का अर्थ है जो हस्तिनापुर, के रूप में संस्कृत में करने के लिए भेजा जा करने के लिए इस्तेमाल किया है कि राज्य, 12 वीं सदी में, शहर पृथ्वीराज चौहान के उपनिवेश में शामिल किया गया था.
इसका नाम दिल्ली, शब्द ‘Dhillika’ (राजा Dhilu ) से प्राप्त किया गया है. (स्वामी दयानंद, के सत्यार्थ प्रकाश (1874) के अनुसार हालांकि यह किसी भी पुराने ग्रंथों द्वारा समर्थित नहीं है, यह सात मध्ययुगीन शहरों की श्रृंखला में पहला था
दिल्ली के इतिहास की बात हो तो उसकी शुरुवात ही पृथ्वी राज चौहान से होती है, पृथ्वीराज चौहान जो की एक बहुत ही वीर और पराक्रमी योद्धा थे, उनके पिता अजयराज ने ही राजस्थान में अजमेर शहर की स्थापना की और उनकी तीसरी पीढ़ी में पृथ्वीराज तृतीय का जन्म हुआ, उन्होंने पूरा राज पुताना, बघेलखण्ड, रुहेलखण्ड और भी कई क्षेत्रो को जीत कर दिल्ली पर अपना झंडा गाड़ दिया, उनका राज्य ११वी से १२वी शताब्दी तक रहा, उन्होंने अपनी मौसी के पुत्र की पुत्री से प्रेम विवाह किया जिसके कारन जयचंद [पृथ्वीराज की मौसी का बेटा] नाराज हो गया।
जब गोरी ने भारत पर हमला किया तो पृथ्वीराज चौहान ने उसे तराईना के १२ युद्ध में पराजित किया और हर बार दया की भेख मागने पर उसे छोड़ दिया, जब गोरी जान गया की वो वीरता में पृथ्वीराज से नहीं जीत सकता तो उसने कुटिलता का सहारा लिया और जयचंद को अपनी तरफ मिला लिया और फिर पृथ्वीराज की कई कमजोरियों को जान कर उस पर हमला किया और जीत गया, इस तरह एक घूर्त हिन्दू राजा के कारन भारत में इस्लाम का कब्जा हो गया।
1192 में मुहम्मद गोरी एक अफगान ने इस राजपूत शहर पर कब्जा कर लिया, और दिल्ली सल्तनत (1206) स्थापित किया गया था. 1398 में तैमूर द्वारा दिल्ली पर आक्रमण इस सल्तनत को खत्म कर दिया; लोढीस दिल्ली के अंतिम सुल्तानों ने 1526 में पानीपत की लड़ाई के बाद मुगल साम्राज्य की स्थापना करने वाले, बाबर, को रास्ता दे दिया. जल्दी ही मुगल सम्राटों ne अपनी राजधानी के रूप में आगरा चुना और दिल्ली में शाहजहां का shashan होने के बाद ही (1638) पुरानी दिल्ली की दीवारों निर्माण kiya gaya .
हिन्दू राजाओं से मुस्लिम सुल्तानों को इस शहर की बागडोर एक से दूसरे शासक को स्थान्तरित होती रही. राष्ट्र के लिए इस शहर से रक्त और बलिदान की बू आ aati है. अतीत से पुराने ‘हवेलियों’ और इमारतें चुप khadi है लेकिन उनकी चुप्पी भी सदियों से उनके मालिकों और लोगों के लिए संस्करणों को बोलती है.
वर्ष 1803 ईसवी में, शहर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया. 1911 में, ब्रिटिश सरकार कलकत्ता से दिल्ली को अपनी राजधानी स्थानांतरित कर दिए. यह फिर se गवर्निंग गतिविधियों का केंद्र बन गया. लेकिन, यह शहर अपने सिंहासन पर रहने वालों ko फेंकने के लिए अधिक प्रतिष्ठित है.
दिल्ली को भारतीय महाकाव्य महाभारत में प्राचीन इन्द्रप्रस्थ, की राजधानी के रूप में जाना जाता है। उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ तक दिल्ली में इंद्रप्रस्थ नामक गाँव हुआ करता था। जिसे महाभारत के समय से जोड़ा जाता है, कुछ इतिहासकार इन्द्रप्रस्थ को पुराने क़िले के आस-पास मानते हैं।
ऐसा माना जाता है कि उसने ही ‘लाल-कोट’ का निर्माण करवाया था और लौह-स्तंभ दिल्ली लाया था। दिल्ली में तोमर वंश का शासनकाल 900-1200 इसवी तक माना जाता है। ‘दिल्ली’ या ‘दिल्लिका’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम उदयपुर में प्राप्त शिलालेखों पर पाया गया, जिसका समय 1170 इसवी निर्धारित किया गया। शायद 1316 इसवी तक यह हरियाणा की राजधानी बन चुकी थी। 1206 इसवी के बाद दिल्ली सल्तनत की राजधानी बनी जिसमें खिलज़ी वंश, तुग़लक़ वंश, सैयद वंश और लोधी वंश समते कुछ अन्य वंशों ने शासन किया।
दिल्ली का मध्यकालीन इतिहास
शाहजहानाबाद, शाहजहाँ (1638-1649) द्वारा निर्मित; इसी में लाल क़िला और चाँदनी चौक भी शामिल हैं।
मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने सातवीं बार दिल्ली बसायी जिसे शाहजहानाबाद के नाम से भी पुकारा जाता है। आजकल इसके कुछ भाग पुरानी दिल्ली के रूप मे सुरक्षित हैं। इस नगर में इतिहास के धरोहर अब भी सुरक्षित बचे हुये हैं जिनमें लाल क़िला सबसे प्रसिद्ध है। जबतक शाहजहाँ ने अपनी राजधानी आगरा में नहीं स्थानांतरित की पुरानी दिल्ली 1638 के बाद के मुग़ल सम्राटो की राजधानी रही। औरंगजेब ने शाहजहाँ को गद्दी से हटाकर खुद को शालीमार बाग़ में सम्राट घोषित किया। 1857 के आंदोलन को पूरी तरह दबाने के बाद, अंग्रेजों ने जब बहादुरशाह ज़फ़र को रंगून भेज दिया उसके बाद भारत पूरी तरह से अंग्रेजो के अधीन हुआ।
प्रारंभ में उन्होंने कलकत्ते (आजकल कोलकाता) से शासन संभाला परंतु 1911 में औपनिवेशिक राजधानी को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया। दिल्ली पांडवों की प्रिय नगरी इन्द्रप्रस्थ के रूप में जानी जाती रही है। कुरूक्षेत्र के युध्द के बाद जब हस्तिनापुर पर जब पांडवों का शासन हुआ तो बडे भाई युधिष्ठिर ने भाईयों को खंडवाप्रस्थ का शासक बनाया जिसकी भूमि बहुत ही बियाबान और बेकार थी, तब मदद के लिये श्रीक्रष्ण नें इन्द्र को बुलावा भेजा, खुद युधिष्ठिर की मदद के लिये इन्द्र नें विश्वकर्मा को भेजा.विश्वकर्मा नें अपने अथक प्रयासों से इस नगर को बनाया और इसे इन्द्रप्रस्थ यानी (इन्द्र का शहर) नाम दिया.
दिल्ली का नाम राजा ढिल्लू के “दिल्हीका”(800 ई.पू.) के नाम से माना गया है, जो मध्यकाल का पहला बसाया हुआ शहर था, जो दक्षिण-पश्चिम बॉर्डर के पास स्थित था। जो वर्तमान में महरौली के पास है। यह शहर मध्यकाल के सात शहरों में सबसे पहला था। इसे योगिनीपुरा के नाम से भी जाना जाता है, जो योगिनी (एक् प्राचीन देवी) के शासन काल में था लेकिन इसको महत्व तब मिला जब 12वीं शताब्दी मे राजा अनंगपाल तोमर ने अपना तोमर राजवंश लालकोट से चलाया, जिसे बाद में अजमेर के चौहान राजा ने जीतकर इसका नाम किला राय पिथौरा रखा.
मुग़ल काल ११९२ में जब प्रथ्वीराज चौहान मुहम्मद गौरी से पराजित हो गये थे, 1206 से दिल्ली सल्तनत दास राजवंश के नीचे चलने लगी थी। इन सुल्तानों मे पहले सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक जिसने शासन तंत्र चलाया इस दौरान उसने कुतुब मीनर बनवाना शुरू किया जिसे एक उस शासन काल का प्रतीक माना गया है, इसके बाद उसने कुव्वत-ए-इस्लाम नामक मस्जिद भी बनाई जो शायद सबसे पहली भी थी।
अब शासन किया िख़लजी वंश(पश्तून) ने जो दूसरे मुस्लिम शासक थे जिन्होने दिल्ली की सल्तनत पर हुकुमत चलायी, इख्तियार उद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी और ग़ुलाम वंश चलाने वाले जलाल उद्दीन फ़िरुज ख़िलजी ने १२९० से १३२० तक खिलजी राजवंश चलाया।
१३२१ से एक और राजवंश चला जो तुग़लक़ वंश के नाम से जाना जाता है, जो मुस्लिम समुदाय तुर्क से मानी जाती है उसमें गयासुद्दीन तुग़लक़ और उसके बेटे ने जो कामयाब शासक भी था जिसका नाम मुहम्मद बिन तुग़लक़ था ने सफ़लता से शासन किया, उसके बाद उसके भतीजे फ़िरोज शाह तुग़लक़ ने भी राज किया लेकिन 1388 में उसकी म्रत्यु के बाद तुग़लक़ राजवंश का पतन होने लगा.
उसके बाद 1414 से 1451 तक सैयद राजवंश भी चला फ़िर उसके बाद 1451 से लोधी राजवंश चला जो क्रमशः बाहलुल लोधी, सिकंदर लोधी और इब्राहिम लोधी ने सन 1526 तक दिल्ली सल्तनत पर राज किया, दौलत खान लोधी के बुलावे पर बाबर जो एक मुगल था उसने हिन्दुस्तान पर चढाई कर दी और लोधी वंश का पतन सन 1526 पानीपत की लडाई में कर दिया था। 1526 बाबर (जहीरूद्दीन मोहम्मद) के बाद 1530 में हुमांयु (नसीरुद्दीन अहमद) ने बाहडोर संभाली. इनके बीच में सन 1540 में सूरी राजवंश हुआ जिसने इस देश पर सालों तक राज किया,1540 में इसके बाद 1658 में औरंगजेब (मुहिउद्दीन मोहम्मद) और 1707 में शाह आलम प्रथम (मुअज्जम बहादुर) ने सन 1712 तक शासन किया।
दिल्ली का आधुनिक इतिहास
मुगल बहादुर शाह जफ़र के बाद सन 1857 मे ब्रिटिश शासन के हुकुमत में शासन चने लगा, 1857 में ही कलकत्ता को ब्रिटिश भारत की राज धानी घोषित कर दिया गया लेकिन 1911 में फ़िर से दिल्ली को ब्रिटिश भारत की राजधानी बनाया गया। इस दौरान नयी दिल्ली क्षेत्र भी बनाया गया।
सात शहर
आधुनिक दिल्ली बनने से पहले दिल्ली सात बार उजड़ी और बसी है जिनके कुछ अवशेष अब भी देखे जा सकते हैं।
1. लालकोट, सीरी का किला एवं किला राय पिथौरा : तोमर वंश के सबसे प्राचीन क़िले लाल कोट के समीप कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा अंतरण किया गया
2. सिरी का क़िला, 1३03 में अलाउद्दीन ख़िलज़ी द्वारा निर्मित
3. तुग़लक़ाबाद, गयासुद्दीन तुग़लक़ (1321-1325) द्वारा निर्मित
4. जहाँपनाह क़िला, मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1325-1351) द्वारा निर्मित
5. कोटला फ़िरोज़ शाह, फ़िरोजशाह तुग़लक़ (1351-1388) द्वारा निर्मित
6. पुराना क़िला (शेरशाह सूरी) और दीनपनाह (हुमायूँ; दोनों उसी स्थान पर हैं जहाँ पौराणिक इंद्रप्रस्थ होने की बात की जाती है।